भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीस साल बाद / लोग ही चुनेंगे रंग

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:56, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बीस साल बाद
मिले
उसका दुख
मेरा दुख

दुखों के चेहरों पर
झुर्रियाँ हैं अब
पके बाल इधर उधर
अहं और सन्देह ने किया घर

दुखों को यूँ मिलते देख
ढूँढा उसके गुस्से ने मेरे गुस्से को
उसके प्यार ने मेरे बचे प्यार को

हम लोग हिसाब किताब कर रहे
घर-परिवार का
दुख हमारे लेट गए
आपस को सहलाते
धीरे-धीरे सुखों में बदलते

अचानक हम जान रहे
दुनिया में बदला है बहुत कुछ बीस सालों में.