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काँटक बन मे / बुद्धिनाथ मिश्र

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लहुआ लिधुर भेल फूलक सपना
काँटक बन मे ।

टोलक टोल बबूर फुलायल
छटपट करइछ आमक पखिना
काँटक बन मे ।

छूटि धनुष गेल व्याधक कर सँ
देखि पियाक पियासल हिरना
काँटक बन मे ।

हमरे सँ ई दिन, ई रितु अछि
कटिते फसिल भेलौं हम अदना
काँटक बन मे ।

हरदिक रंग नहाओल विधु कें
ताम्रपत्र लिखि गेल अछि मदना
काँटक बन मे ।

कजरौटा सन एहि नगरक लेल
सूर्यक जन्म एक दुर्घटना
काँटक बन मे ।