फूल झरे जोगिन के द्वार
हरी-हरी अँजुरी में 
भर-भर के प्रीत नई
रात करे चाँद की गुहार । 
केसर-क्यारी से 
बहकी हिरना साँवरी
ठुमुक-ठुमुक चले
कहीं रुके नहीं पाँव री
कहाँ तेरा हाट-बाट 
कहाँ तेरा गाँव री ? 
बादल की चुनरी पसार
काँप-काँप, अंग-छवि
बावरी अँजोरिया 
ताल में निहारे बार-बार । 
पीपर की छाँह बसे 
छुई-मुई प्रीत रे 
अधरों से झाँक रहे 
अधसँवरे गीत रे
अनजाने नाम लिखे 
सीपियों के मीत रे  
रेत भरे तीर को बुहार
रोम-रोम से अधीर 
दर्द सब निचोड़ कौन 
भेज रहा प्रिया को दुलार । 
बगुले-सी आस तिरे
मन में दिन-रैन रे 
धनही पगडंडी पर 
बिछुआ बेचैन रे 
सुलझ रहे स्वप्न-बंध 
उलझ रहे नैन रे  
कौन परी तोड़ गयी हार!
एक-एक पंखुरी पर
अल्पना रचा गयी
बाँसुरी सुना गयी मल्हार ।