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यह तपन / बुद्धिनाथ मिश्र

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चिलचिलाहट धूप की
पछवा हवा की मार
यह तपन हमने सही सौ बार ।

सूर्य खुद अन्याय पर होता उतारू जब
चाँद तक से आग की लपटें निकल पड़तीं
चिनगियों का डर समूचे गाँव को डँसता
खौलते जल में बिचारी मछलियाँ मरतीं

हर तरफ़ है
साँप-बिच्छू के ज़हर का ज्वार
यह जलन हमने सही सौ बार ।

मुँह धरे अंडे खड़ी हैं चींटियाँ गुमसुम
एक टुकड़ा मेघ का दिखता किसी कोने !
आज जबसे हुई दुबराई नदी की मौत
क्यों अचानक फूटकर धरती लगी रोने ?

दागती जलते तवे-सी पीठ को दीवार
यह छुवन हमने सही सौ बार ।
 
तलहटी के गर्भ में है वरुण का जीवाश्म
इन्द्र की अत्मा स्वयं बन गयी दावानल
गुहाचित्रों-सा नगर का रंग धुँधला है
गंध मेंहदी की पसारे नींद का आँचल

चौधरी का हुआ बरगद-छाँह पर अधिकार
यह घुटन हमने सही सौ बार।