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दिन बीत गया / केदारनाथ अग्रवाल

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दिन, बीत गया,
अब रीत गया,
जमुना-जल के छलके-छलके
मृग-मारुत के पग से चलके
हलके-हलके बिजना झलके

रचनाकाल: ०१-०९-१९५६