भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबदां री नदी मांय / नीरज दइया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:45, 24 अक्टूबर 2010 का अवतरण
म्हैं अंवेर’र राख्यो है
थारै दियोड़ो-
गुलाब ।
जद थूं दियो
म्हैं नीं जाणतो हो अरथ
उण नै लेवण रो ।
नीं जाणतो हो म्हैं
कै किणी रै ई पांती आ सकै है
अणजाण-अचाणचकै कदैई
कोई गुलाब ।
अबै थूं
म्हारै अंतस रै आंगणै
गुलाब रै उण फूल साथै जीवै है
अर म्हारै सबदां री नदी मांय
बैवै है उडीक साथै ।