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माटी होवण री जातरा / ओम पुरोहित ‘कागद’
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माटी रो
ओ गोळ घेरो
कोई मांडणो नीं
ऐनाण है डफ रो
काठ सूं
माटी होवण री जातरा रो ।
डफ हो
तो भेड भी ही
भेड ही
तो चरावणियां भी हा
चरावणियां हा तो
हाथ भी हा
हाथ हा तो
ओ क्यूं हो
मीत हा
गीत हा
प्रीत ही
जकी निभगी
माटी होवण तक ।