भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन करै / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:58, 24 अक्टूबर 2010 का अवतरण
मन
कीं न कीं
करतो रै’वै ।
मन करै
पाखंड़ी बणूं
कळी बणूं
फळ बणूं
या
बा डांडी बणूं
जकी माथै लागै
पांखड़ी
कळी
फूल
फळ ।
अर फेर करै
बणूं भंवरो
सुंघू फूल
बेअंत
कदै ई करै
बणूं रुत
फगत बसंत ।