Last modified on 24 अक्टूबर 2010, at 18:02

जहाँ गिरा वह सूर्य / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 24 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जहाँ निराला मरे
वहाँ अब मरे न कोई
जहाँ गिरा वह सूर्य
वहाँ अब गिरे न कोई

नव वसंत में
इस युग के इस अमर-प्राण का
युग वंदन हो
सुभग सुमन से अभिनंदन हो।

वह था साधक
बहुत लोग थे उसके बाधक
फिर भी जिसने ऐंड़ लगाई
मिट्टी खाई

नव वसंत में
इस युग के इस प्रवर प्राण का
आराधन हो
वर्ण-वर्ण से अभिवादन हो।

रचनाकाल: १२-०२-१९६२