ये ख़्वाहिश है कि मरते वक्त लब पर राम आ जाए
सुकूँ से मर सकूँ और रूह को आराम आ जाए
सभी चीज़ें पुरानी घर की यूँ मत फेंक देना तुम
न जाने कौन से पल चीज़ कोई काम आ जाए
गुज़रता जा रहा है वक़्त आपाधापी में यूँ ही
कभी मेरे भी हिस्से इक सुहानी शाम आ जाए
निकलते वक़्त घर से तुम सभी से मिल मिला लेना
न जाने किस धमाके से तेरा पैग़ाम आ जाए
मरूँ चाहे कहीं पर ख़ाक अपने देश में होऊँ
मेरी मिट्टी ही कुछ तो इस वतन के काम आ जाए