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जल भीनी प्यास / रमेश रंजक

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तिल-तिल कर परने ने भरमाया
द्वार, दिया वचन तो नहीं आया ।

बड़ी-बड़ी परछाई छोटी हो कर फैली
रेशे-रेशे टूटी दृष्टि-अरगनी मैली
अँजुरी भर रंग पी गई छाया
टूटे विश्वासों का नीलापन गहराया ।

जल-भीनी प्यास कमल पंखुरी-सी कुम्हलाई
तुलसी चौरे वाली रोशनी नहीं भायी
थाल भरा गीत रहा अनगाया
तिनके-तिनके मन को साँसों ने छितराया ।