भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे मन-मिरगा नहीं मचल / भारत भूषण
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:51, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण
मेरे मन-मिरगा नहीं मचल
हर दिशि केवल मृगजल-मृगजल!
प्रतिमाओं का इतिहास यही
उनको कोई भी प्यास नहीं
तू जीवन भर मंदिर-मंदिर
बिखराता फिर अपना दृगजल!
खौलते हुए उन्मादों को
अनुप्रास बने अपराधों को
निश्चित है बाँध न पाएगा
झीने-से रेशम का आँचल!
भीगी पलकें भीगा तकिया
भावुकता ने उपहार दिया
सिर माथे चढा इसे भी तू
ये तेरी पूजा का प्रतिफल!