Last modified on 10 नवम्बर 2010, at 20:17

नदारद अस्तित्व का अनंत सुनसान / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:17, 10 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

न धूप को है
न सैर को है
अपना अहसास
मगर है
जैसे नहीं है
आदमी के पास
आदमी की शक्ल
आदमी का बोध
आदमी की अक्ल
उसका अस्तित्व
सपाट है-
सपाट
नदारद अस्तित्व का
अनंत सुनसान

रचनाकाल: २७-०१-१९६८