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आदमी-एक / केदारनाथ अग्रवाल

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आदमी देखते हैं
अपनी दिशाओं के दर्पण में
दौड़ते आ रहे कल को
कायर निकम्मे डरते हैं
इस आ रहे कल से बचने के लिए

रचनाकाल: २७-०७-१९६९