भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़म होते है/जावेद अख़्तर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 12 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जावेद अख़्तर |संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर }} [[Category:…)
ग़म होते है जहां ज़हानत होती है
दुनिया में हर शय <ref> चीज</ref>की कीमत होती है
अक्सर वो कहते है वो बस मेरे है
अक्सर क्यूँ कहते है हैरत होती है
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते है जब भी फुर्सत होती है
अपनी महबूबा में अपनी माँ देखे
बिन माँ के लड़कों की फितरत <ref> प्रकृति</ref> होती है
इक कश्ती में एक कदम ही रखते है
कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है
शब्दार्थ
<references/>