भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाळणी / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:34, 13 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>रोजीना थारै शबदां बिंध्योड़ी चालणी म्हारे मन में बण जावै थूं ज…)
रोजीना थारै शबदां बिंध्योड़ी चालणी
म्हारे मन में बण जावै
थूं जाणनो चावै कम अर बतावणो चावै घणौ।
म्हारे करियोड़े कारज में
थूं खोट जोवै
अर कसरां बांचै
म्हे जाणूं हूं, पण चावूं
थूं थारी सरधा सारु इयां करतो रे
चायै म्हारे काळजे में चाळनियां बधती जावै
काल थारा कांकरा अर रेतो
ई चालणी सूं ई छानणो है