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विमाता / इवान बूनिन

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मैं ग़रीब अनाथ बालिका थी
               और माँ क्रूर थी मेरी
जब घर लौटी मैं, झोंपड़ी थी खाली
               और रात अँधेरी

माँ ने मुझे ढकेल दिया था
                एक काले अँधेरे वन में
अनाज छानने-फटकारने को,
                पिसने को जीवन में

अन्न साफ़ किया मैंने बहुत,
                पर जीवन-गान नहीं था
दरवाज़े की साँकल बज उठी
                पाहुन अनजान नहीं था

चौखट में दिखलाई दिए मुझे
                लौहबन्द लगे दो सींग
यह झबरे पैरों वाली माँ थी,
                जो मार रही थी डींग

अपने कठोर दाएँ पंजे से,
            झपट उसने मुझे उठाया
विवाह-वेदी पर नहीं मुझे
               पीड़ा-वेदी पर बैठाया

भेजा उसने मुझे ऐसी जगह,
               घने वनों के पार
जहाँ तीव्रधार नदियाँ बहती थीं
               हिम पर्वत था दुश्वार

पर जंगल पार किए मैंने सब,
               शमा हाथ में लेकर
उन तेज़ नदियों को लाँघा,
               निकले आँसू बह-बह कर

फिर हिम पर्वत पर खड़ी हो गई,
               लिए बिगुल एक हाथ
सुनो, लोगो सुनो, जिसे प्यार मैं करती हूँ,
               अब वह है मेरे साथ

(20 अगस्त 1913)

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय