भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निरंतर जलने वाला दिया / इवान बूनिन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 16 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=इवान बूनिन |संग्रह=चमकदार आसमानी आभा / इवान ब…)
|
चुप है वह क्लांत
रहती है शांत
उसके पास ख़ुशी कभी नहीं लौटेगी अब
दफ़ना दिया गया उसे
वर्षा से गीली धरती में
विदा दी ख़ुशी को उसने, वह हो गई अलग
चुप है वह, खोई-खोई है
आत्मा खाली है और खाली है हिया
जैसे किसी समाधि पर बना है गिरजा
और गिरजे में गूँगी क़ब्र पर रात-दिन
निरन्तर जलता हो दिया
(1903-1905)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय