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आसथा !/ कन्हैया लाल सेठिया

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दिवलो,

न चढ़ते सुरज नै देखै‘र

न ढ़ळतै नै,

बीज,

न उगतै रूखं नै देखै‘र

न फळते नै

पण

बां री आस्था है

बळणैं में‘र गळणैं में !