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क्यों प्यार किया / शैलेन्द्र

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जिसने छूकर मन का सितार,

कर झंकृत अनुपम प्रीत-गीत,

ख़ुद तोड़ दिया हर एक तार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


बरसा जीवन में ज्योतिधार,

जिसने बिखेर कर विविध रंग,

फिर ढाल दिया घन अंधकार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


मन को देकर निधियां हज़ार,

फिर छीन लिया जिसने सब कुछ,

कर दिया हीन चिर निराधार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


जिसने पहनाकर प्रेमहार,

बैठा मन के सिंहासन पर,

फिर स्वयं दिया सहसा उतार,

मैंने उससे क्यों प्यार किया ?

1946 में रचित