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जुग-भीष्म !/ कन्हैया लाल सेठिया

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चनण रै वन में
सैल कर‘र
मुड़ग्यो पाछो
उतराधो
सूरज रो रथ,
किचरीजग्यो
घोड़ां री टापां स्यूं
हिमाळै रो गरब,
घालण लागगी डील
साव माड़ी नद्यां,
जलमण लागग्या
बगत रै घरां
डीघा दिन‘र बावनीं रातां,
निसरग्या बारै
धरती री कैद तोड‘र
बागी बीज,
साम लियो सिर
पगां तळै चिंथीज्योड़ी दूब,
पीड़ा‘र अभावां री
सेज पर सूतो
जुग रो भीषम
अडीकै हो
आ ही पुळ घड़ी
अबै इन्छ‘र छोडैलो
आप रौ खोळियो