Last modified on 17 नवम्बर 2010, at 02:07

भींत / दीनदयाल शर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:07, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{KKCatBaalKavita}}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

म्हे रैह्वां
अेक घर मांय
तीन घर बणाय'र ।

भींत....!

भींत क्यूं देखै
कांई दूजो

क्यूं कै
भींत बणा राखी है
म्हे आप - आपरै भीतर ।