भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गा / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:15, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीण नै
दूध-छा
खाण नै
दही - घी- मक्खण
बाळन-लीपण नै
गोबर
अर खेत सारू
खात देवै ।

मिनख
इण रा
हाड-चाम भी
काम लेवै ।

मिनखां सारू
आपरौ
आ' कण-कण
अरपित करद्यै
आ' गा है
कै
आ' मा है ।