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नुंवै धान री सुगन !/कन्हैया लाल सेठिया

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मत पाड़ बगत रो माजनूं
जे पलट्यो ओ पाछो
कर‘र छोडैला
स्यान रा टक्का,
कयो मान
उपण बायरै री रूख सारू
जणां हुवैला अळघा
तूंतड़ा‘र दाणा
नही‘स पड्यो रह भलांई
नाख्यां खळै में गूदड़ा
दुरकारबो कर

गाठै पर हंगता गंडकड़ा
भूख चेत नीं‘र लपकैण आ ज्यासी
गेलैसर
थारो रूळयाड़ मन
लै अठै तांईं आवै है
पाड़ोसी रै झूंपै में खदबदतै
नुंवै धान री सुगन !