भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घायल चिड़ी अर टाबर / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:37, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>गोळी रै धमाकै सागै घायल हो जावै आंगणै में पड़ै आभै उड़ती चिड़ी …)
गोळी रै धमाकै सागै
घायल हो जावै आंगणै में पड़ै
आभै उड़ती चिड़ी एक
खून सूं लथपथ पांखां देख
डरूं-फरूं हुवै टाबर
आभै कानी देखै-
अलघै-अळघै तांई
आंख्यां आगै अंधारो !