भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धान की यह फ़सल / अनिरुद्ध नीरव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध नीरव |संग्रह=उड़ने की मुद्रा में / अनिर…)
लहलहाती
धान की यह फ़सल
आएगी खलिहान में
लेकर हिसाब
सूद कितना
और कितना असल
खेत पुरखों से हमारे
बीज
पिण्डों-सा दिया
पम्प से पानी पटा कर
समझ लो तर्पण किया
वे न पढ़ पाए बही
शायद पढ़े यह शकल
लोग कहते हैं
पटा मत
लिख शिकायत
होड़ कर
हम भला
कैसे मरेंगे
कर्ज़ कफ़नी ओढ़कर
लोग हँसते हैं
बड़ी हैं भैंस
या फिर अकल ।