भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काका / मनीष मिश्र

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:40, 24 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनीष मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> आज वे नही हैं जान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज वे नही हैं
जाने कहाँ भटक रहे होंगे।
शायद शब्दों के पड़ोस में
खबरों के तिलस्मी बियाबान में
छपते हुये ताजे अखबार की गर्मी के पास
जाने कहाँ ................
वे खबर-नवीस थे-
सूरज नहीं अखबार तय करते थे उनकी सुबह
ना जीतने की शर्त, ना हारने का मातम
न सपनों की डोर, ना जीवन की छोर।
आज उनकी अनुपस्थिति में
उनके खबरों की हजारों कतरनें
उनकी याद में फडफ़ड़ाती हैं
कई ताज़ा खबरें उनके घर के पास
दिपदिपाती हैं।