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क्षण / केदारनाथ अग्रवाल

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नहीं रह सकता अकेला
अपने आप
देश-काल से मुक्त
न हो सकता है ऐसा क्षण
न जिया जा सकता है ऐसा क्षण
न दुहराया जा सकता है ऐसा क्षण
न स्वतः पूर्त हो सकता है ऐसा क्षण
न रूपायित हो सकता है ऐसा क्षण
न पाया जा सकता है ऐसा क्षण
क्षण में
न कोई चिड़िया उड़ी है
न कभी उड़ेगी
न घोंसला बना है, न बनेगा
न बादल बरसा है
न बरसे में
क्षण की बत्तख
अनंत क्षणों की बत्तख है।

रचनाकाल: २१-१०-१९७०