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स्वर / केदारनाथ अग्रवाल
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स्वर से
सितार और आदमी
देश-काल में पैरते हैं
स्वर का एक छोर
दूसरे छोर से जुड़ा है
बीच में
सितार और आदमी झूलते हैं
स्वर हुआ निःस्वर
न आदमी झूलता है
न सितार
रचनाकाल: २२-१०-१९७०