Last modified on 26 नवम्बर 2010, at 10:47

कुदरत री पड़ / निशान्त

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 26 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{KKCatKavita…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
मौकळै मेह पछै
दूर आभै में
ऊंट-घोड़ियै-सा
ऊभा बादळ
जाणै टग्योड़ी होवै-

पाबू जी री पड़
अर आगै खड़िया
ऊंचा-ऊंचा दरखत
जाणै- भोपा-भोपी
उण नै बांचै ।