Last modified on 26 नवम्बर 2010, at 11:57

कोनी चालै जोर / मदन गोपाल लढ़ा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:57, 26 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



मोकळी मांडो विगत
अणचावा सपनां री
कोनी चालै जोर
सपनां माथै
आवै ज्यूं ई आवै।
आप दांई
दुनियां रो हरेक मिनख
टाळणो चावै
डरावना सपनां
अर देखणो चावै
फगत अर फगत
मनभावतां सपनां
पण मेह, मौत अर सपनां ईं
अळघा है
बजार री जद सूं
नींतर घर अर मन तांई
पूगग्या उणरा हाथ
भाड़ै मिल जावै
कूख तकात।
थमो, थोड़ा ढ़बो
बिरथा है जतन
कोनी चालै जोर सपनां माथै।