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जूनी ओळूं / मदन गोपाल लढ़ा

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कांई ओजूं ईं
थनै लखावै
म्हारी उडीक रो
एक-एक दिन
एक बरस रै उनमान।

थारी प्रीत रै मिस
उण बगत रा बोल
थारै हेत रा कोल
थारी हर रा रंग
कांई ठाह
होग्या कठै अदीठ।

सांची बता
थारै मन में
कदी-कदास
हिलोरो मारै है का कोनी
उण बगत री औळूं

स्यात अबै
थूं ई हुयगी स्याणी
भावना रो भतूळियो
मंदो पड़ग्यो
जगती में गमग्यो
आपणो सोवणो-सुरंगो बगत।