भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल विरह / संतोष मायामोहन
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:56, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण
जब गिरती है बूंद
पृथ्वी तल
छम-छम नाचता है जल ।
हर्षित होती है बावड़ी
बरसने की आशा
जी उठता है जल
गर ना बरसे
तो सूक मरे
विरह ।
अनुवाद : नीरज दइया