भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहिए से आदमी / अनिरुद्ध नीरव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:43, 2 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध नीरव |संग्रह=उड़ने की मुद्रा में / अनिर…)
चक्रव्यूह में खड़े-खड़े
पहिए से आदमी लड़े
एक साँस
जीने का क्षण
महासमर लगे
एक तह कुरेदे
तो
यातना अमर लगे
छाती तक रेत में गड़े
पहिए से आदमी लड़े
समझौते
कंधों पर
विंध्याचल धर गए
बहके तो
विष निर्झर
कान में उतर गए
चेहरे को पेट पर मढ़े
पहिए से आदमी लड़े
कोई
तेजाब नदी
शीश पर गुज़र गई
बौना-मन
बर्फ़ रहा
ज़िन्दगी कुहर गई
कूपों के एटलस पढ़े
पहिए से आदमी लड़े ।