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म्हारौ मन / रामस्वरूप किसान
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जोड़ायत री
टोका-टाकी
अर मायतां री
नां-नुकर रै उपराड़ै
अर म्हारै ई
नां-नां करतां
म्हरौ सूरड़ौ मन
कवि बण ई ग्यौ छेकड़
देखतां देखतां
तंगी रौ तम्बू
तण ई ग्यौ छेकड़
जकै रै तळै
कविता रौ
बेजौ बणीज्यै
जठै छोटी-छोटी जरूरतां
भूखै बाळ ज्यूं
ताणै पर बैठ/ठणकै
तागा तोड़ै,
पेटै रौ कूकड़ियौ उळझावै।
इसै में म्हारो मन
कविता बणावै।