भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केसरिया बन्ना बागों में आया रे / हिन्दी लोकगीत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:08, 5 दिसम्बर 2010 का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
केसरिया बन्ना बागों में आया रे, केसरिया बन्ना बागों में आया रे
आवो री सज धज कर आवो री,
सखियन सब आवो री, माला पहनावो री
केसरिया बन्ना बागों में आया रे ।।
ये मेरे हाथ फूलों की डाली, ये मेरे हाथ फूलों की डाली
मैं जो मालन बन कर आई, बागों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे
ये मेरे हाथ चौमुखी दियना, ये मेरे हाथ चौमुखी दियना
मैं तो ज्योति बन कर आई, महलों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे
ये मेरे हाथ पानों के बीडे, ये मेरे हाथ पानों के बीडे,
मैं जो लाली बन कर आई, रंगों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे,
केसरिया बन्ना बागों में आया रे
आवो री सज धज कर आवो री,
सखियन सब आवो री, माला पहनावो री
केसरिया बन्ना बागों में आया रे ।।