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क़दम ये इंक़लाब के / शलभ श्रीराम सिंह
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ये गीत अधूरा है, आपके पास हो तो इसे पूरा कर दें ।
...य' किसने कह दिया भला सितम के दिन निकल गए !
रिकाबोज़ीन है वही सवार तो बदल गए !
सुना जो आँधियों के देश में चिराग जल गए !
वतनफ़रोश भी वतन के रहनुमाँ में ढल गए !
जिसे न पढ़ सके हो तुम
न ख़ुद पे मढ़ सके हो तुम
बदल के ज़िल्द आ गए सफ़े उसी क़िताब के !
भटक न जाएँ साथियो ! क़दम ये इंक़लाब के !
ये इंक़लाब के क़दम !
क़दम ये इंकलाब के !