Last modified on 7 दिसम्बर 2010, at 16:28

घर में रमती कवितावां 25 / रामस्वरूप किसान

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:28, 7 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामस्वरूप किसान |संग्रह=आ बैठ बात करां / रामस्व…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जुदाई रै
गुस्सै में
बावळो आंगणौं
फैंकतो रैवै
भौत बार
बेकार चीज
छात पर

पण छात
छाती देखौ
हांस‘र
सो कीं कबूलै।