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आज का दिल डूबा / केदारनाथ अग्रवाल

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आज का दिल डूबा
कल के विचार में,
अदेखे दृश्य के निराकार संसार में
होनहार का आकार वर्तमान में पाने के लिए
कल का मुकुट आज के माथे पर लगाने के लिए
कल की दुंदुभी आज के माहौल में बजाने के लिए
कल का चश्मा
आज की नाक पर चढ़ाने के लिए
समय की यात्रा में
दूर तक निर्भय चले जाने के लिए
शताब्दियों से गिरे आदमी को
ऊपर उठाने के लिए

रचनाकाल: ०९-०६-१९७६, मद्रास