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उजास रा सुपना(कविता) / शिवराज भारतीय

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काळी-कामळी ओढ़‘र आई रात अंधारी ल्याई जगमग तारां री आ छिब निरवाळी घोर अंधारी रात मावस री। कांई नीं सूझै नीं दिसै हाथ नै हाथ मांयलो जीव अमूंझै चम-चम्/चम-चम्/तारा चमकै मनड़ो मौ‘वै पळ-पळ, पळ-पळ पळका मारै मारग जोवै जाणै कठै लुकग्यो चांदो सूरज छिपग्यो किरत्यां री क्यारी में कोरो काळस बसग्यो मुळक-मुळक तारा ज्यूं नूंवों जोस जगावै हीरा-मोत्यां रो थाळ धरा आभौ छिटकावै मती अमूंझै जीव रात सुख रो पगफेरो घोर अंधारै में उजास रा सुपना हेरो।

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