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"माया" श्रृंखला -२ /रमा द्विवेदी
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१-भक्तों के माया-दान से,
वेंकटेश भी परेशान हैं।
आठो पहर रहते खड़े,
अभिनय भी उनका महान है॥
२- सरकार की नज़रों से हरदम,
'कर' छुपा लेते हो तुम।
किन्तु अपने पाप धोने को,
मुझपर चढ़ा देते हो तुम॥
३-माया की अनुमति के बिना,
आशीष मेरा पा सको ना।
इहलोक की तो बात क्या?
परलोक भी तुम जा सको ना॥
४-माया से ही वैभव मेरा,
माया स्वचालित स्वर्ग है।
माया बिना बस नर्क है,
माया बिना सब व्यर्थ है॥
५-माया की इस प्रतिद्वन्द्विता में,
अबतक खड़े वेंकटेश हैं।
इन्सान को बतला रहे ,
अब तक भी वे कुछ शेष हैं॥
६-माया के अंध-कूप में,
कंठ तक डूबे हो तुम।
मुझको भी बख्सा नहीं,
मुझको भी ले डूबे हो तुम॥