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''प्रभो! अच्छा पत्नीव्रत पाला ! / गुलाब खंडेलवाल
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प्रभो अच्छा पत्नीव्रत पाला !
धोबी के ही कहे प्रिया को निर्वासन दे डाला !
बजवा सत्य-न्याय का डंका
जिसके लिए विजय की लंका
उसी सती को करके शंका घर से तुरत निकला
'सोचा भी न तनिक यह मन में
क्या बीतेगी उस पर वन में !
चाँद बिना चाँदनी भुवन में पा सकती उजियाला !
'यदि लोकापवाद था गन्दा
न्याय सदा होता है अँधा
तो क्यों नहीं राज्य का फन्दा अपने सिर से टाला !'
प्रभो अच्छा पत्नीव्रत पाला !
धोबी के ही कहे प्रिया को निर्वासन दे डाला !