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'नूर-जहाँ' / हबीब जालिब
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हुजूम-ए-यास में जोत आस की तिरी आवाज़
हम अहल-ए-दर्द की है ज़िंदगी तिरी आवाज़
लबों पे खिलते रहें फूल शेर-ओ-नग़्मा के
फ़ज़ा में रंग बिखेरे यूँही तिरी आवाज़
दयार-ए-दीदा-ओ-दिल में है रौशनी तुझ से
है चेहरा चाँद मधुर चाँदनी तिरी आवाज़
हो नाज़ क्यूँ न मुक़द्दर पे अपने 'नूर-जहाँ'
तुझे क़रीब से देखा सुनी तिरी आवाज़
न मिट सकेगा तिरा नाम रहती दुनिया तक
रहेगी यूँही सदा गूँजती तिरी आवाज़