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अंगारों पर चलकर ही / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

अंगारों पर
चलकर ही हम
किनारों तक पहुँचे हैं।
जलधारा
नहीं थी शीतल
अपने पैरों के नीचे,
गर्म अश्रु से
संकल्प सभी
अहर्निश हमने सींचे।
पतझारों को
छूकरके ही
बहारों तक पहुँचे हैं।
-0-(29 अक्टूबर 1991)