अंजोरिया / रामविचार पाण्डेय
1
टिसुना जागलि अपना कृस्न जी के देखे के त,
अधी रतिये खाँ उठि चलली गुजरिया।
चान का निअर मुँह चमकेला रधिका के,
चम-चम चमकेले जरी के चुनरिया।
चकमक-चकमक लहरि उठेले ओमें,
मधुरे-मधुरे डोले कान के मुंनरिया।
गोखुला के लोग इ त देखि के चिहइले कि,
राति में आमावसा का उगली अंजोरिया।
2
फूल का सेजरिया पर सूतल कन्हइया जी,
सपाना देखेले कि जरत दूपहरिया।
ओकरे में हमरा के राधिका खोजति बाड़ी,
फेड़ नइखे, रूख नाहीं, जल बा कगरिया।
कहताड़ी-’धाव कृष्ण, धाव कृष्ण, आव तनी,
हमके देखा द आजु गोखुला नगरिया;
‘अइलीं राधे, अइलीं राधे’ कहिके जे उठेले त,
एने फूलले कमल, ओने चढ़ली अंजोरिया।
3
‘हमके बोला लीतू तू अइलू हा कइसे हो,
बड़ी भाकासावनी भइली बा अन्हरिया।
कंसवा के घूमत राकस बटमार बाड़े,
गोकुला में होति कबो-कबो बाटे चोरिया।’
‘सभ के ठगेल कृष्ण, हमके भोराव जानि,
हाथ हम जोरिले करीले गोड़धरिया।
हृदया में जेकरा त तूहीं बइसल बाड़,
ओकरा खातिर ई अन्हरियो अंजोरिया।’
4
‘थाकल तू होइबू राधे आव तनी बइस ना,
एही पलंगरिया पर हमरे कगरिया।’
‘तनवा के करिया त जनमें से भइल तूं,
मनावाँ के काहे के बनत बाड़ करिया।
अबहीं जो जाइके जशोदा जी से कहिदीं त,
भलीं तरे आइके करसु पीठि फोरिया।’
‘अउरी त कुछऊ कह तनइखी राधा रानी।
तनी करिया के उजर बनाव ए अंजोरिया।’