अंतर्द्वन्द्व / कल्पना लालजी
डूबते सूरज के साथ डूब जाता हूँ मैं
अनचाही स्मृतियों से पार कहाँ पाता हूँ मैं
पल-पल आकर हरदम छेड़ जाती हैं वे
होठों पर झूठी मुस्कान ले आती हैं वे
चाँदनी रातों में विष का घूंट पीता हूँ मैं
डूबते सूरज के साथ डूब जाता हूँ मैं
कोशिशें की हज़ार बच नहीं पाता
करवटें लेता रहा सो नहीं पाता
कशमकश के सागर में तैर नहीं पाता हूँ मैं
डूबते सूरज के साथ डूब जाता हूँ मैं
अंधकार इस मन का है डरा रहा
झूठ सर्वदा सत्य को है हरा रहा
क्यों नहीं इस तथ्य को भूल पाता हूँ मैं
डूबते सूरज के साथ डूब जाता हूँ मैं
चीत्कार कर उठा अंतर्मन मेरा
असमंजस के चक्रों ने नित्य मुझे घेरा
छटपटाहट की पीड़ा से निकल नहीं पाता हूँ मैं
डूबते सूरज के साथ डूब जाता हूँ मैं
कैसे राह जीवन की मैं भटक गया
अभिमन्यु चक्रव्यूह में ज्यों अटक गया
उलझी हुई इन कड़ियों को जोड़ नहीं पाता हूँ मैं
डूबते सूरज के साथ डूब जाता हूँ मैं