Last modified on 11 अक्टूबर 2010, at 11:40

अंत में लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू


चुप्पी के खिलाफ
किसी विशेष रंग का झंडा नहीं चाहिए

खड़े या बैठे भीड़ में जब कोई हाथ लहराता है
लाल या सफेद
आँखें ढूँढती हैं रंगों के अर्थ

लगातार खुलना चाहते बंद दरवाज़े
कि थरथराने लगे चुप्पी
फिर रंगों के धक्कमपेल में
अचानक ही खुले दरवाज़े
वापस बंद होने लगते हैं

बंद दरवाज़ों के पीछे साधारण नज़रें हैं
बहुत करीब जाएँ तो आँखें सीधी बातें कहती हैं

एक समाज ऐसा भी बने
जहाँ विरोध में खड़े लोगों का
रंग घिनौना न दिखे
विरोध का स्वर सुनने की इतनी आदत हो
कि न गोर्वाचेव न बाल ठाकरे
बोलने का मौका ले ले

साथी, लाल रंग बिखरता है
इसलिए बिखराव से डरना क्यों
हो हर रंग का झंडा लहराता

लोगों के सपने में यकीन रखो
लोग पहचानते हैं आस का रंग
जैसे वे जानते हैं दुखों का रंग
अंत में लोग ही चुनेंगे रंग.