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अंधा युग / अशोक कुमार
Kavita Kosh से
धृतराष्ट्र कई हैं
तुम भी
मैं भी
वे भी
संजय भी कई हैं
तुम भी
मैं भी
वे भी
चश्मे कई रंग के हैं
लाल
हरे
केसरिया
मैदान भी कई हैं
रामलीला
धर्मशाला
चेपक
धर्मयुद्ध भी कई हैं
तेरे
मेरे
उसके
सुविचारित रूप से
पूरा युग अंधा है।