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अगलग्गी / पतझड़ / श्रीउमेश
Kavita Kosh से
आगिन लागलै गामोॅ में तेॅ हाय-हाय के मचलै सोर।
फूकी देलकै गामोॅ केॅ, लेॅ एक ओर से दोसरोॅ छोर॥
हँसी-खुसी के गरमागरम जहाँ छेलै लगलोॅ बाजार।
वहीं धकाधक लहरी रहलोॅ छै ई लाल-लाल अंगार॥
फट-फट-फट-फट बाँस फटै छै, तड़-तड़ टूटै छै मस्तूल।
धरनी गिरलै धाँयँ-धाँयँ रे, साँय-साँय जरलै इसकूल॥
धुइयाँ के गुब्बार उठै छै, लपट उठी गेलै आकास।
तेकरा पर छै जोर-सोर सें ई पछियारी दुखद बतास॥
घोॅर, हबेली, चौखन्डी, ठाकुरबाड़ी, नरुआ के टाल।
छप्पर ठाठ खाक भेॅ गेलै, जरलै सौंसे गाय-गुहाल॥
यै बकती में हमरे छाया असरन-सरन बनी गेलै।
बच्चा-बुतरु, मरद-जनानी के दुख हरन बनी गेलै॥