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अगहन आरोॅ किसान / अवधेश कुमार जायसवाल
Kavita Kosh से
अइलै अगहन मास
ओस गिरै छै घासोॅ पर
चमकै छै मोती रंग चमचम
कोयल कूकै गाछी पर।
गुन-गुन रौदा अच्छा लागै
सूटर फबलै सांझ पर
आबेॅ नै टपकै गाल पसीना
धानोॅ केॅ अटिया टालोॅ पर।
टूटलोॅ खटिया पर बैठी किसनमा
गुड़ गड़ हुक्का पीयै छै
हाथ कलेवा लेने घरनी
धान देखी केॅ रीझै छै।
धान डंगैतेॅ मन-मन सोचै
कोनी कोठी में राखबै धान
कर्जा-बर्जा चुकता करबै
बेटी केॅ छेदबैबै कान।
कानोॅ में बाली, नाकोॅ में बेसर
बेटी लगतै राज कुमारी
आबेॅ नै रहतै ऊ कुमारी।
लाल दोशाला पीरी चोली
लहंगा गोटा चम-चम-चम
बाँही में पहुँची गोड़ोॅ में छाड़ा
डोली चढ़तै छम-छम-छम।